एक नई सोच, एक नई धारा

हाँ एक नारी हूँ मैं

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रचना बंसल (दिल्ली)

ईश्वर की बनाई हर रचना में ,सबसे खूबसूरत प्यारी हूँ मैं,
चाहें कितने पतझड़ आयें, खिलते फूलों की क्यारी हूँ मैं,
हाँ , एक नारी हूँ मैं।
इन चूड़ियों को मेरे हाथों की जंजीर समझ न कर गलती,
इन जंजीरों को भी पिघला सकती हूँ , वो चिंगारी हूँ मैं,
हाँ एक नारी हूँ मैं।
कोमल हूँ मैं ,कमजोर नहीं, देखों किसी पर बोझ नहीं,
मेरा अपना भी वजूद है, तुम न समझना बेचारी हूँ मैं,
हाँ एक नारी हूँ मैं।
करुणा, ममता,सहनशील और त्याग ही पहचान है मेरी,
एक जीव को जन्म देने वाली, मौत से भी ना हारी हूँ मैं
हाँ एक नारी हूँ मैं।
अंत में..
जीवन मरण के समय चक्र में हर सवाल का जवाब लिए,
दुर्गा, शक्ति का अवतार हूँ, शक्ति स्वरूपा हितकारी हूँ मैं,
हाँ एक नारी हूँ मैं।