
मुहब्बत होती रूह से रूह तक,
फिर ये हवस की आग क्यों?
साँसों का मिलन साँसों तक,
फिर ये दौलत की भूख क्यों?
अपनों से बनते रिश्ते अनेक,
फिर ये स्वार्थ की बोली क्यों?
मात-पिता से घर होता स्वर्ग,
फिर ये वृद्धाश्रम की राह क्यों?
बेटियों से महकता घर-आँगन,
फिर ये कन्या भूर्ण हत्या क्यों?
सबके खून का रंग हैं जब लाल,
फिर ये धर्म का महायुद्ध क्यों ?
दाल रोटी से जब होता गुजारा,
फिर ये ईर्ष्या, द्वेष के भाव क्यों ?
‘सागर’ ऋषि-संतों से मिलता ज्ञान,
फिर ये अज्ञानता का ढोंग क्यों ?