एक नई सोच, एक नई धारा

विलय में लय की कमी, भाजपा का दिख रहा सौतेला व्यवहार

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भाजपा नेता अभय सिंह की गिरफ्तारी और उस पर भाजपा की अब तक कि गतिविधियों पर सवालिया निशान खड़ी करती हुई ‘गौरव हिन्दुस्तानी’ की यह लेख

भारत की ही नहीं अपितु विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप जानी जाने वाली भारतीय जनता पार्टी का नारा ‘सबका साथ – सबका विकास’ और पार्टी के आलाकमान की बातें कि यह पार्टी कार्यकर्ताओं की पार्टी है, इस बात पर जमशेदपुर महानगर की जिला कमेटी और कुछ हद तक प्रदेश कमेटी सवालिया निशान लगा रही। जो पार्टी अपने नेता के पक्ष में खुलकर सामने नहीं आ रही वह कार्यकर्ताओं को लेकर चलने वाली कितनी बड़ी पार्टी होगी यह विचारणीय है।
विगत दिनों कदमा में घटित सांप्रदायिक दंगों के मामले में गिरफ्तार हुए भाजपा नेता अभय सिंह की गिरफ्तारी से लेकर अब तक किसी भी बड़े नेता का कार्यकर्ताओं को तो छोड़िए आम जनता को संतुष्ट करने वाला कोई भी बयान नहीं आया। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में भाजपा के केंद्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास तो ऐसे चुप बैठे हैं जैसे दही जमी हुई हो और यह पहली बार नहीं है, रामनवमी के समय प्रशासन के नियमों के विरुद्ध भी जब आवाज़ उठा तब भी महाशय द्वारा एक बयान तक जारी नहीं हुआ। हिंदुत्व के नाम पर भाजपा को मतदान करने वाली जनता के लिए भी यह चिंतनीय है कि क्या भाजपा सच में हिंदुत्व की आवाज़ उठाने वाली राष्ट्रीय पार्टी है या सिर्फ कथनी ही है, क्योंकि हिंदुओं की आवाज़ उठाने वाले नेताओं के पक्ष में तो भाजपा मौन धारण की हुई रहती है और यह पहला मामला भी नहीं है।

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सोचने वाली बात यह भी है कि विगत 1 साल पहले पटमदा डीएसपी द्वारा जब बोड़ाम मंडल के महामंत्री को झूठे आरोप में गिरफ्तार किया गया था तब इसी भाजपा ने जनआक्रोश रैली निकाल कर थाना का घेराव किया था, तो अब ऐसी क्या बात हो गयी है कि भाजपा अपने इतने कदावर नेता के पक्ष में सिर्फ जुबानी फायरिंग कर रही है वो भी दबे ज़ुबान में। जब कि चर्चाओं का माहौल साफ तौर पर यह बयाँ कर रहा है कि अभय सिंह पर लगी धाराएं गलत है और अभय सिंह घटना के दिन कदमा तो छोड़िए उसके आस पास भी नहीं गए थे, तो फिर आखिर भाजपा कि कार्यशैली इस प्रकार क्यों है यह बात कार्यक्रताओं और जनता को समझ नहीं आ रही है।


गुटबाज़ी तो हर राजनीतिक पार्टी के अंदर है किंतु जमशेदपुर महानगर के जिला कमेटी सहित सम्पूर्ण झारखंड के भाजपा पार्टी का यह सौतेला व्यवहार कई सवाल खड़े कर रहे हैं। क्या जेवीएम से पहले की जो खट्टास थी वह अब भी बरकरार है? क्या जेवीएम के विलय के बाद भी अंदरूनी लय अभी तक नहीं बन पाई ? क्या 2024 के चुनाव में अपने अपने वर्चस्व को लेकर एक अंदरूनी राजनीति का खेला चल रहा है ? यदि यह सब है तो यह कहना कतई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भाजपा का 2024 में वापस झारखंड के सत्ता पर काबिज़ होने का ख़्वाब चकनाचूर होने वाला है। आज अभय सिंह का मुद्दा हर चौराहे पर चाय पे चर्चा वाला मुद्दा बना हुआ है और पूर्वी के निर्दलीय विधायक सरयू राय का खुलकर अभय सिंह के समर्थन में आने से राजनीतिक हवाएं अपना रुख बदल रही हैं। वहीं भाजपा के टुकड़े टुकड़े में अभय सिंह के समर्थन पर दीवाली में मिर्ची पटाखे की तरह फूटना बेअसर दिख रही है। यदि भाजपा अभय सिंह और हिन्दू नेताओं के पक्ष में खुलकर नहीं आती है तो यह कहना गलत नहीं होगा कि 2024 में भाजपा को बुरी तरह से मुँह की खाने के लिए तैयार रहना चाहिए।