राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विरुद्ध जिस तरह मोर्चा खोल दिया है, वह कांग्रेस नेतृत्व के लिए एक बड़ी मुसीबत है, लेकिन इसके लिए वह स्वयं ही अधिक जिम्मेदार हैं। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच खटपट नई नहीं और न ही कांग्रेस नेतृत्व समेत अन्य कोई उससे अपरिचित है। दोनों नेताओं के बीच कलह से भली तरह परिचित होते हुए भी कांग्रेस नेतृत्व ने उसे दूर करने की कोशिश नहीं की। उसने समय-समय पर सचिन पायलट को कुछ आश्वासन अवश्य दिए, लेकिन उन्हें पूरा करने की दिशा में आगे नहीं बढ़ा। यदि उसे अपने आश्वासन पूरे ही नहीं करने थे तो फिर दिए ही क्यों?
यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि कांग्रेस नेतृत्व अशोक गहलोत के दबाव का सामना नहीं कर सका और उसने उनके आगे हथियार डाल दिए। यह तभी स्पष्ट हो गया था, जब अशोक गहलोत ने खुद को पार्टी अध्यक्ष बनाने की कांग्रेस नेतृत्व की पहल नाकाम कर दी थी। वह अपनी शर्तों पर कांग्रेस अध्यक्ष बनना चाह रहे थे। जब नेतृत्व ने उनकी शर्तें मानने से इन्कार किया तो उनकी शह पर उनके समर्थक विधायकों ने बगावत कर दी। यह सीधे तौर पर कांग्रेस नेतृत्व ही नहीं, गांधी परिवार के खिलाफ खुला विद्रोह था, लेकिन कोई कुछ नहीं कर सका। अशोक गहलोत इस विद्रोह को हवा देने के बाद भी अपने पद पर बने रहे।
सचिन पायलट के तेवरों से यह साफ है कि उनका धैर्य जवाब दे गया है। उन्होंने पहले तो अपनी ही सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन किया, फिर अशोक गहलोत के इस बयान के लिए उन्हें निशाने पर लिया कि उनकी सरकार बचाने में भाजपा नेता वसुंधरा राजे ने उनकी मदद की थी। सचिन पायलट ने यह कहकर अशोक गहलोत पर करारा हमला बोला कि लगता है उनकी नेता सोनिया गांधी नहीं, वसुंधरा राजे हैं। वह रुकने वाले नहीं, यह उनकी इस घोषणा से स्पष्ट होता है कि वह 11 मई से अपनी जन संघर्ष यात्रा निकालने जा रहे हैं।
सचिन पायलट पिछले महीने जब एक दिन के लिए अनशन पर बैठे थे, तब कांग्रेस नेतृत्व ने अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की थी, क्योंकि यह अनशन गहलोत सरकार के खिलाफ था। कांग्रेस नेतृत्व सचिन पायलट पर कार्रवाई करने की स्थिति में भी नहीं और उनकी शिकायतों का समाधान करने में भी सक्षम नहीं दिख रहा है। यदि गहलोत और पायलट के बीच खींचतान और बढ़ती है, जो कि साफ दिख रही है तो कांग्रेस को चुनावों में वैसा ही नुकसान उठाना पड़ सकता है, जैसा उसे पंजाब में उठाना पड़ा था। पंजाब में कांग्रेस नेताओं के बीच खींचतान इसीलिए बढ़ी थी, क्योंकि पार्टी नेतृत्व गांधी परिवार के चापलूस नेताओं के साथ खड़ा हो गया था। नतीजा यह हुआ कि वहां कांग्रेस बिखर गई।