रांची। झारखंड पुलिस मुख्यालय से जारी हुए आदेश के बाद थानों में खलबली मच गयी है। पीएचक्यू ने आदेश में कहा है कि अब राज्य के थाना-ओपी में कार्यरत निजी चालक और मुंशी के खिलाफ कार्रवाई होगी। डीजीपी के आदेश के तहत, ऐसे थानेदारों और ओपी प्रभारी पर अनुशासनिक कार्रवाई की जाएगी, जो थाने के दैनिक कार्य में निजी चालक और मुंशी का इस्तेमाल करते हैं।
डीजीपी के आदेश के बाद, अब सभी थाना प्रभारी और ओपी प्रभारी को निर्देश दिया गया है कि वे अपने-अपने थाने से निजी चालक और मुंशी को हटाकर सरकारी कर्मचारियों को इन कार्यों में नियुक्त करें।राज्य में यह सूचना मिली थी कि कई थानों में निजी चालक और मुंशी अपने-अपने थाने के दैनिक कार्यों को निपटाने में लगे हुए हैं, जो पुलिस विभाग के लिए चिंताजनक स्थिति बन सकती है।
डीजीपी ने इस मामले को गंभीरता से लिया और सभी जिलों के एसएसपी-एसपी को इस आदेश से अवगत कराया। इसके साथ ही, डीजीपी ने यह भी स्पष्ट किया है कि भविष्य में यदि किसी थाना या ओपी में निजी चालक और मुंशी के काम करने की सूचना मिली तो संबंधित थाना प्रभारी या ओपी प्रभारी इसके लिए जिम्मेदार होंगे और उनके खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई की जाएगी।
एसपी स्तर पर भी इस आदेश के बाद सक्रियता दिखी और सभी एसपी ने अपने सार्जेंट मेजर को आदेश जारी करते हुए थानों और ओपी में सरकारी चालक उपलब्ध कराने के निर्देश दिए। डीजीपी ने यह भी निर्देश दिया है कि जब तक चालक के पद पर नई बहाली नहीं हो जाती, तब तक रिक्तियों को भरने के लिए सिपाही अधिकारियों को वाहन चलाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा और उन्हें थाने-ओपी के चालक के रूप में काम पर लगाया जाएगा।
थानों में निजी चालक और मुंशी को हटाने के पीछे एक महत्वपूर्ण तर्क यह है कि थानों में गोपनीय जानकारी, दस्तावेज और महत्वपूर्ण रिकॉर्ड होते हैं जो क्षेत्र की कानून व्यवस्था को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। निजी चालक और मुंशी से इन गोपनीयताओं के लीक होने का खतरा बढ़ सकता है।
इसके अलावा, थानों के निजी चालकों की ओर से आ रही शिकायतें भी इस कार्रवाई की वजह बनी हैं। अक्सर ऐसी शिकायतें सामने आती रही हैं कि निजी चालक खुद को थाना प्रभारी से भी बड़ा समझने लगे हैं, धमकियां देते हैं और पैसों की वसूली करते हैं। कई बार इन निजी चालकों को थानेदारों द्वारा अपनी निजी पसंद के अनुसार काम करने की छूट दी जाती रही है, जिससे वे अपने अवैध कार्यों को अंजाम देने में भी संलिप्त रहते हैं।
यदि सरकारी चालक होगा तो उसे अपनी नौकरी बचाने का डर रहेगा, इसलिए वह किसी भी गलत कार्य में संलिप्त नहीं होगा। वहीं, निजी चालक को न तो नौकरी जाने का डर होता है और न ही वह किसी अनुशासनिक कार्रवाई से प्रभावित होता है, जिससे वह अपने काम में मनमानी करने की स्थिति में होता है।डीजीपी का यह आदेश पुलिस महकमे में एक बदलाव का संकेत है और यह सुनिश्चित करेगा कि थानों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और अनुशासन बना रहे।