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नगर निगम की कबाड़ में पड़े हैं स्‍वतंत्रता सेनानियों के शिलापट्ट, दुर्गति देखकर आंखों से निकल आएंगे आंसू

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देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और रांची के स्वतंत्रता सेनानियों के नामों का शिलापट्ट कबाड़ में है। जी हां, यह हकीकत है। हमारे अधिकारी जिस ऊंची कुर्सी पर बैठे हैं, उन्हें यह कुर्सी इन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों की बदौलत मिली है, लेकिन हमारे अंदर उनके प्रति थोड़ी भी सम्मान-आदर नहीं है।

स्वतंत्रता सेनानियों के नामों की दुर्गति देखकर आंसू आ जाएंगे। अपर बाजार के नगर निगम परिसर में ये शिलापट्ट कबाड़ में पड़े हैं। कोई भी शिलापट्ट अब पूर्ण नहीं है। कहीं न कहीं से खंडित हो चुका है और खोदे गए नाम भी अब बहुत मुश्किल से ही पढ़े जा रहे हैं।

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ज्ञात हो कि देश की आजादी के जब 25 साल हुए थे तो स्वतंत्रता सेनानियों को ताम्रपत्र दिया गया था। उसी समय हर शहर में स्वतंत्रता सेनानियों के नामों के शिलापट्ट बने थे और उन्हें यथा स्थान स्थापित किया गया था ताकि शहर अपने नायकों के बारे में जान सके। पर, अधिकारियों की उदासीनता के कारण इन्हें कबाड़ ही नसीब हुआ है।

दो शिलापट्ट पर संविधान की प्रस्तावना

यहां करीब चार फीट के दो शिलापट्ट है। ऊपर का शिखर टूट गया है। वह जमीन पर पड़ा है। सबसे ऊपर तीन पंक्तियों में लिखा गया है-भारत की आजादी के 25 वर्ष पूरे होने पर राष्ट्र की ओर से भारत सरकार द्वारा स्थापित। 15 अगस्त 1972 ई से 14 अगस्त 1973 ई। उसके नीचे मोटे अक्षरों में भारत के संविधान की प्रस्तावना। उसके बाद-हम भारत के लोग-फिर न्याय, स्वतंत्रता, समात, बंधुता की जानकारी दी गई।

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तीन शिलापट्ट पर स्वतंत्रता सेनानियों के नाम

यहां तीन शिलापट्ट हैं। ये भी खंडित हैं। एक शिलापट्ट पर तीन लोगों के नाम हैं-इनमें महादेव साहु, सोभा भगत और जोहन मिश्र का नाम है। ये सभी रांची जिले के प्रखंड चान्हों के हैं। ऊपर लिखा हुआ है। दूसरे शिलापट्ट पर सिर्फ एक नाम है-रामरक्षा ब्रह्मचारी का। एक तीसरा शिलापट्ट है, जिस पर पांच लोगों का नाम अंकित किया है।

इस पर भी किसी प्रखंड का नाम है, शायद बुंडू, पर स्पष्ट नहीं है। यहां स्वतंत्रता सेनानियों के तीन नाम भी पढ़ना मुश्किल है। दो नामों में हैं-शनिचरवा उरांव, नान्दी साहू।

बाकी तीन नाम भी भगत हैं। यानी ये टाना भगत हैं, जिन्होंने 1942 की क्रांति में बढ़-चढ़कर भाग लिया था। यह दसियों साल से यहीं पड़ा है। गर्मी-बरसात झेलता और मिटता हुआ। कुछ दिनों बाद ये बचे नाम भी मिट जाएंगे।

हमें इसकी जानकारी नहीं है। देखते हैं। उन्हें सही जगह स्थापित करने का प्रयास करते हैं। ये हमारे लिए गौरव की बात है।