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रिम्स : बिना टेंडर सालों से चल रही प्राइवेट एबीजी लैब

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झारखंड के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान रिम्स की व्यवस्था सुधरने का नाम नहीं ले रही है। कभी मनमाफिक लोगों को एचओडी बनाने तो कभी अपने लोगों को आर्थिक लाभ पहुंचाने के लिए रिम्स में नियमों को ताक पर रखने की बातें अक्सर ही सामने आती रही हैं। ऐसा ही मामला रिम्स में एबीजी (आर्टेरियल ब्लड गैस) जांच से जुड़ा है।

महज कुछ मिनटों में होने वाली यह जांच गंभीर मरीजों के उपचार में सहायक है, लेकिन रिम्स प्रबंधन बीते लगभग चार साल से यह जांच निजी लैब के माध्यम से करा रहा है। जबकि इस लैब के संचालन को लेकर कभी टेंडर हुआ ही नहीं। आश्चर्य की बात यह है कि बिना टेंडर के संचालित इस लैब को मरीजों की जांच के बदले हर साल लगभग 1.34 करोड़ का भुगतान किया जाता है। कोरोना से पहले तत्कालीन निदेशक डॉ डीके सिंह ने इस लैब के लिए एक कॉटेज मुफ्त में दिया था, जिसका प्रतिदिन किराया 250 रुपए है। उसके बाद आए निदेशक पद्मश्री डॉ कामेश्वर प्रसाद ने इसे अत्याधुनिक ट्रॉमा सेंटर में एक रूम दे दिया।

रिम्स में बेकार पड़ी हैं एबीजी की कई मशीनें

रिम्स में एबीजी जांच की सुविधा पहले से मौजूद है। मरीजों के त्वरित उपचार में डॉक्टरों की सहायता के लिए रिम्स के लगभग सभी आईसीयू में एबीजी मशीन लगी है, लेकिन आज तक कभी भी इन मशीनों को सही से संचालित नहीं किया गया।

जबकि, निजी स्तर पर संचालित लैब में एक स्टाफ के माध्यम से ही इसका संचालन किया जाता है, लेकिन रिम्स में एबीजी मशीन के संचालन को लेकर प्रबंधन द्वारा कोई व्यवस्था नहीं की गयी। अभी भी रिम्स में लगभग एक दर्जन एबीजी मशीनें जहां-तहां लगी हैं, लेकिन जांच निजी लैब में कराई जा रही है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि बीते चार वर्षों में कई दफा शासी परिषद की बैठकें हुई, लेकिन आज तक जीबी के सामने भी इसका खुलासा नहीं किया गया कि बिना टेंडर निजी लैब का संचालन किया जा रहा है। प्रबंधन नए टेंडर की बात तो करता है, लेकिन रिम्स में कबाड़ हो रही एबीजी मशीनों के संचालन पर कुछ भी कहने को तैयार नहीं है।

प्रति जांच 122 रुपए किया जा रहा भुगतान

रिम्स में विवेक इंटरप्राइजेज के माध्यम से एबीजी जांच की जा रही है। इस जांच के लिए मरीजों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता है, लेकिन रिम्स प्रबंधन की ओर से प्रति जांच 122 रुपए का भुगतान किया जाता है। हर दिन औसतन 300 से अधिक जांच की जाती है। यानी इस लैब को हर वर्ष लगभग 1.34 करोड़ का भुगतान किया जाता है। इस संबंध में लैब संचालक ज्योति प्रकाश ने बताया कि तत्कालीन निदेशक डॉ डीके सिंह को कंपनी ने प्रस्ताव दिया था, जिसे स्वीकार करते हुए लैब को जगह दी गयी।

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