
एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनावों का अध्ययन करने के लिए गठित राम नाथ कोविंद की अगुवाई वाली उच्च-स्तरीय समिति अपने गठन के पांच महीने बाद आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।
रिपोर्ट में एक साथ चुनावों की आर्थिक व्यवहार्यता पर 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्राची मिश्रा का एक पेपर भी शामिल है। रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने के लिए जरूरी वित्तीय और प्रशासनिक संसाधनों का भी ब्यौरा होगा। इसने अपनी वेबसाइट के माध्यम से दिए गए फीडबैक और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों सहित विभिन्न हितधारकों से मिले फीडबैक पर विचार किया है।
समिति का सितंबर 2023 में हुआ था गठन
समिति का गठन पिछले साल सितंबर में किया गया था और इसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति कोविंद हैं। समिति राजनीतिक दलों, संवैधानिक विशेषज्ञों, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों और चुनाव आयोग और अन्य संबंधित हितधारकों के साथ उनके विचार जानने और मामले पर जानकारी इकट्ठा करने के लिए परामर्श कर रही है। समिति के कार्यक्षेत्र में शासन, प्रशासन, राजनीतिक स्थिरता, खर्च, और मतदाता भागीदारी पर चुनावों के संभावित प्रभाव की जांच करना शामिल है। इसे सिफारिशें तैयार करने और इसके फायदे और नुकसान को बताते हुए एक व्यापक रिपोर्ट पेश करने का भी काम सौंपा गया है।
चुनाव कराने के बढ़ते खर्च पर चिंता
इससे पहले भी एक संसदीय स्थायी समिति, नीति आयोग और विधि आयोग ने एक साथ चुनाव के मुद्दे पर विचार किया है, जिसमें एक के बाद एक चुनाव कराने के बढ़ते खर्च पर चिंता जताई गई। साथ ही संभावित संवैधानिक और कानूनी समस्याओं का भी जिक्र किया गया है। कोविंद पहले ही संसदीय और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने के पक्ष में आ चुके हैं और सभी राजनीतिक दलों से राष्ट्रीय हित में इस विचार का समर्थन करने की अपील कर चुके हैं। पिछले साल नवंबर में पूर्व राष्ट्रपति ने कहा था कि केंद्र में सत्ता में रहने वाली किसी भी पार्टी को “एक राष्ट्र, एक चुनाव” से लाभ होगा और चुनाव खर्च में बचाए गए धन का इस्तेमाल विकास के लिए किया जा सकता है।
भाजपा के 2014 और 2019 घोषणापत्र में एक साथ चुनाव की वकालत
भारतीय जनता पार्टी के 2014 और 2019 के घोषणापत्र में पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की वकालत की गई थी, लेकिन इसे लागू करने के लिए संविधान में कम से कम पांच अनुच्छेद और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में बदलाव करना होगा। 20 फरवरी को भाजपा ने इस विचार का समर्थन करते हुए कोविंद के नेतृत्व वाले पैनल से कहा था कि भारत के चुनावों को नियंत्रित करने वाले कानून में बदलाव आम सहमति से लाया जाना चाहिए और आदर्श आचार संहिता का बार-बार लागू होना शासन को नुकसान पहुंचाता है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। भाजपा के अलावा, जनता दल (यू), शिवसेना और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया – अठावले ने एक साथ चुनाव के विचार का समर्थन किया है।